किनकी ध्वनियों को दुहराऊँ
ऐ मेरी प्रेरणा-बीन के वादक! बे जाने जब जब, बजा चुके हो, जगा चुके हो, सोते फितनों को जब-तब, किन चरणों में आज उन्हें रक्खूँ? किसका अपमान करूँ? किसकी ध्वनियों को दुहराऊँ हृदय हलाहल-दान करूँ? आया हूँ मैं नाथ, तुम्हारे कण्ठ कालिमा देने को! और तुम्हारा वैभव लेकर गीत तुम्हारा होने को।

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