पूर्वाभास
हाय ! विभव के उस पद में नियति-भीषिका की मुसकान जान न सकी भोग में भूली- सी तेरी प्यारी सन्तान। सुन न सका कोई भी उसका छिपा हुआ वह ध्वंसक राग- ‘‘हरे-भरे, डहडहे विपिन में शीघ्र लगाऊँगी मैं आग।’’

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