प्रण-भंग
विश्व-विभव की अमर वेलि पर फूलों-सा खिलना तेरा। शक्ति-यान पर चढ़कर वह उन्नति-रवि से मिलना तेरा। भारत ! क्रूर समय की मारों से न जगत सकता है भूल। अब भी उस सौरभ से सुरभित हैं कालिन्दी के कल-कूल।

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