Poets
Poetry
Books
Log in
Poets
Poetry
Books
Poetry
/
प्रण-भंग
प्रण-भंग
Dinkar
#
Hindi
विश्व-विभव की अमर वेलि पर फूलों-सा खिलना तेरा। शक्ति-यान पर चढ़कर वह उन्नति-रवि से मिलना तेरा। भारत ! क्रूर समय की मारों से न जगत सकता है भूल। अब भी उस सौरभ से सुरभित हैं कालिन्दी के कल-कूल।
Share
Read later
Copy
Last edited by
abhishek
March 31, 2017
Added by
Chhotaladka
March 31, 2017
Similar item:
www.kavitakosh.org
Views:
12,234,002
Feedback
Read Next
Loading suggestions...
Show more
Cancel
Log in