राम, तुम्हारा नाम
राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे, हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे, दुख से त्राण नहीं माँगूँ। माँगू केवल शक्ति दुख सहने की, दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया अकातर ध्यानमग्न रहने की। देख तुम्हारे मृत्यु दूत को डरूँ नहीं, न्योछावर होने में दुविधा करूँ नहीं। तुम चाहो, दूँ वही, कृपण हौ प्राण नहीं माँगूँ।

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