नन्दा देवी-13
यूथ से निकल कर घनी वनराजियों का आश्रय छोड़ कर गजराज पर्वत की ओर दौड़ा है : पर्वत चढ़ेगा। कोई प्रयोजन नहीं है पर्वत पर पर गजराज पर्वत चढ़ेगा। पिछड़ता हुआ यूथ बिछुड़ता हुआ मुड़ता हुआ जान गया है कि गजराज मृत्यु की ओर जा रहा है : शिखर की ओर दौड़ने की प्रेरणा मृत्यु की पुकार है। उधर की दुर्निवार गजराज बढ़ेगा। यह नहीं कि यूथ जानता है यह नहीं कि गजराज पहचानता है कि मृत्यु क्या है : एक कुछ चरम है एक कुछ शिखर है एक कुछ दुर्निवार है एक कुछ नियति है। शिखर पर क्या है, गजराज? ...मृत्यु क्या मृत्यु ही है शिखर पर? मृत्यु शिखर पर ही क्यों है? क्या यहाँ नहीं है, नहीं हो सकती? कहाँ नहीं है, जो शिखर पर हो? मृत्यु ही शिखर है कदाचित्? किस का शिखर? क्या शिखर की ओर दुर्निवार जाना ही प्रमाण है कि शिखर बस एक आयाम है- किस का आयाम? तो शिखर से आगे क्या है? त्वादृङ् नो भूथान्नचिकेता प्रष्टा... तो क्या मैं शिकार की ओर दौड़ा हूँ या शिखर से आगे? किस का शिखर? महतः परमव्यक्तम् शिखर से आगे क्या है, गजराज? अव्यक्तात्तपुरुषः परः पांडव हिमालय गये थे : पांडव- पर युधिष्ठिर कहाँ गये थे? शिखर से आगे क्या है? त्वादृङ् नो भूयान्नचिकेता प्रष्टा... शिखर से आगे क्या है? क्या...क्या...? है, है... सा काष्ठा सा परा गति... यूथ से निकल कर गजराज...

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