नन्दा देवी-4
वह दूर शिखर यह सम्मुख सरसी वहाँ दल के दल बादल यहाँ सिहरते कमल वह तुम। मैं यह मैं। तुम यह एक मेघ की बढ़ती लेखा आप्त सकल अनुराग, व्यक्त; वह हटती धुँधलाती क्षिति-रेखा : सन्धि-सन्धि में बसा विकल निःसीम विरह।

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