नन्दा देवी-15
रात में मेरे भीतर सागर उमड़ा और बोला : तुम कौन हो? तुम क्यों समझते हो कि तुम हो? देखो, मैं हूँ, मैं हूँ, केवल मैं हूँ... मैं खो गया सागर उमड़ता रहा उस की उमड़न में दबा मैं सो गया सोता रहा और सागर होता रहा, होता रहा, होता रहा... भोर में जब पहली किरण ने नन्दा का भाल छुआ, तो नन्दा ने कहा : यह देखो, मैं हूँ : मैं हूँ तो तुम्हारा माथा कभी भी नीचा क्यों होगा? तब किरण ने मुझे भी छुआ : मैं हुआ।

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