बलि पुरुष
ख़ून के धब्बों से अँतराते हुए पैरों के सम, निधड़क छापे। भीड़ की आँखों में बरसती घृणा के पार जाते हुए उस के प्राण क्यों नहीं काँपे? सभी पहचानते थे कि वह निरीह है, अकेला है, अन्तर्मुखी है : पर क्या जानते थे कि वह बलि मनोनीत है इस ज्ञान में वह कितना सुखी है?

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