उनके घुड़सवार
उन के घुड़सवार हम ने घोड़ों पर से उतार लिये। हमारे युग में घुड़सवारी का चलन नहीं रहा। (घोड़ों का रातिब हमीं को खाने को मिलता रहा।) उन की मूर्तियाँ गला दी गयीं : धातु क्या हुआ, पता नहीं। उस के तो पिये तो नहीं बने। कहीं तोपें तो नहीं बनीं? -यह पूछने के लिए उन्हीं के द्वारे जाना पड़ेगा जिन के पास अब घोड़े नहीं हैं : वे अनुकूलित वायु में या विमानों में सफ़र करते हैं। उन की भी मूर्तियाँ बनेंगी। चौराहों पर जहाँ अब ध्यान देने के लिए हरी-पीली-लाल बत्तियाँ हैं, पैदलों द्वारा उपेक्षणीय भी कुछ होना चाहिए। लेकिन हम : हम जब हमारी सड़कों पर चलेंगे, तब आँख उठा कर किस की ओर देखेंगे?

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