आज मैं ने
आज मैं ने पर्वत को नयी आँखों से देखा। आज मैं ने नदी को नयी आँखों से देखा। आज मैं ने पेड़ को नयी आँखों से देखा। आज मैं ने पर्वत पेड़ नदी निर्झर चिड़िया को नयी आँखों से देखते हुए देखा कि मैं ने उन्हें तुम्हारी आँखों से देखा है। यों मैं ने देखा कि मैं कुछ नहीं हूँ। (हाँ, मैं ने यह भी देखा कि तुम भी कुछ नहीं हो।) मैं ने देखा कि हर होने के साथ एक न-होना बँधा है और उस का स्वीकार ही बार-बार, हमें हमारे होने की ओर लौटा लाता है उस होने को एक प्रभा-मंडल से मँढ़ता हुआ। आज मैं ने अपने प्यार को जो कुछ है और जो नहीं है उस सब के बीच प्यार के एक विशिष्ट आसन पर प्रतिष्ठित देखा। (तुम्हारी आँखों से देखा।) आज मैं ने तुम्हारा एक आमूल नये प्यार से अभिषेक किया जिस में मेरा, तुम्हारा और स्वयं प्यार का न होना भी है वैसा ही अशेष प्रभा-मंडित आज मैं ने तुम्हें प्यार किया, प्यार किया, प्यार किया...

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