कदंब कालिंदी (पहला वाचन)
टेर वंशी की यमुना के पार अपने-आप झुक आयी कदम की डार। द्वार पर भर, गहर, ठिठकी राधिका के नैन झरे कँप कर दो चमकते फूल। फिर-वही सूना अँधेरा कदम सहमा घुप कालिन्दी कूल!

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