हम जिये
लौटे तो लौट चले पाँव-पाँव, मन को यहीं इसी देहरी पर छोड़ चले जीवन भर उड़ा किये ले सपना-‘वह अपना है’, उसी की छाँव तले उस को ही सौंप दिये पांख आज। तड़पे। फिर कौंध-सी में जाना, यह लाज भी उसी से है- यह भी उसी को दी। रह गयी चौंध एक जिस में सब सिमट गया! वही बस साथ लिये, हार दाँव, हम जैसा भी जिये जिये!

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