कहो राम, कबीर
न कहीं से न कहीं को पुल न किसी का न किसी पे दिल न कहीं गेह न कहीं द्वार सके जो खुल न कहीं नेह न नया नीर पड़े जो ढुल... यहाँ गर्द-गुबार न कहीं गाँव न रूख न तनिक छाँव न ठौर यहाँ धुन्ध यहाँ ग़ैर सभी गुमनाम यहाँ गुमराह सभी पैर यहाँ अन्ध यहाँ-न-कहीं-यहाँ दूर... कहो राम, कबीर!

Read Next