नृतत्व संग्रहालय में
तब- इतिहास नहीं था जब- जिन की ये हड्डियाँ हैं वे जीवित थे। जो आज हैं सिकुड़े जर्जर कंकाल, रीढ़, भुजा, कूल्हे, कपाल- मगर आह, यह एक पंजे में अटका उजले धातु का छल्ला! पुरातत्त्व? तत्त्व यह कि धूल है सब- क्या वह, क्या हम सभी कुछ है सम- अब भी नहीं है इतिहास, केवल क्रम, विक्रमन- मगर वह-वह पुराने खरे धातु की चमक और यह-यह भीतर की खरी सनातन सुलगन!

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