धावे
पहाड़ी की ढाल पर लाल फूला है बुरूँस, ललकारता; हर पगडंडी के किनारे कली खिली है अनार की; और यहाँ अपने ही आँगन में अनजान मुस्करा रही है यह कांचनार। दिल तो दिया-दिलाया एक ही विधाता ने : धावे मगर उस पर बोले हज़ार!

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