नहीं, युलिसीज़
नहीं, युलिसीज़ न तुम्हें कभी मिलेगी इथाका न मुझे कभी द्वारका। वापसी में यों भी कोई नगर नहीं मिलते : प्रवासी लौटते तो हैं पर उनकी घर-वापसी नहीं होती जहाँ वापसी होती है वहाँ उनके घर नहीं होते : उन्हें कोई नहीं पहचानता। सागर ही उनका घर है जो एक दिन उन नगरों को भी लील लेगा- तुम्हारी इथाका को, युलिसीज़, और मेरी द्वारका को। सागर ही है जो अपनी पहचान कभी नहीं खोता।

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