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फिर गुज़रा वह
फिर गुज़रा वह
अज्ञेय
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Hindi
फिर गुज़रा वह घिसटे पैरों से गली की गच को सुख-माँजता मलते हाथ रुकते लटक जाती हैं बाँहें उमस में खप जाती मन-मसोस आहें कंचे से न कुछ देखते, न दिखाते आँखों के झरोखे ढोता है वह न घटते भार के पछताहट के धोखे।
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Last edited by
abhishek
March 31, 2017
Added by
Chhotaladka
March 31, 2017
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