रक्तबीज
रक्तबीज का रक्त जहाँ जहाँ गिरता था एक और रक्तबीज उठ खड़ा होता था। राक्षस था रक्तबीज राक्षसी शक्ति धरा के स्पर्श से और पनपती है धरा की भूख ही तो उसके भीतर की आग है धरा से वह आग खींचती है केवल आग प्राण नहीं : प्राणलेवा आग। रक्तबीच प्राण फूँकता नहीं, प्राण लेता है पर उसका रक्त जहाँ जहाँ गिरा धरती झुलस गयी : आग था वह। वहाँ अब कुछ नहीं पनपेगा जब तक स्वेच्छित मानव रक्त से उस स्थल का अभिसिंचन नहीं होगा। रक्त से सींचो फिर हरी होगी वह फलेगी। ख़ून के दाग़ कपड़े पर हों तो पानी से धुल जाते होंगे पर धरती पर हों तो रक्त से ही धुलते हैं और उपाय नहीं। उसका रक्त धुल जाएग तो धरती हरी हो जाएगी उसे हम भूल जाएँगे, पर धरती हरी हो जाएगी। तुम्हें चाहिए क्या? उसे याद रखने के लिए धरती झुलसाये रखना या उसे भुला देना और धरती का हरियाना?

Read Next