पहेली
गुरु ने छीन लिया हाथों से जाल, शिष्य से बोले : 'कहाँ चला ले जाल अभी ? पहले मछलियाँ पकड़ तो ला ?' तकता रह गया बिचारा भौंचक । बीत गए युग । चले गए गुरु । बूढ़ा, धवल केश, कुंचित मुख चेला सोच रहा था अभी प्रश्न : 'क्यों चला जाल ले ? पहले, रे मछलियाँ पकड़ तो ला ?' सहसा भेद गई तीखी आलोक-किरण । 'अरे, कब से बेचारी मछली घिर अगाध से सागर खोज रही है !'

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