जब पपीहे ने पुकारा
जब पपीहे ने पुकारा-- मुझे दीखा-- दो पँखुरियाँ झरीं गुलाब की, तकती पियासी पिया-से ऊपर झुके उस फ़ूल को ओठ ज्यों ओठों तले। मुकुर मे देखा गया हो दृश्य पानीदार आँखों के। हँस दिया मन दर्द से-- ’ओ मूढ! तूने अब तलक कुछ नहीं सीखा।’ जब पपीहे ने पुकारा- मुझे दीखा।

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