कि हम नहीं रहेंगे
हमने शिखरों पर जो प्यार किया घाटियों में उसे याद करते रहे! फिर तलहटियों में पछताया किए कि क्यों जीवन यों बरबाद करते रहे! पर जिस दिन सहसा आ निकले सागर के किनारे— ज्वार की पहली ही उत्ताल तरंग के सहारे पलक की झपक-भर में पहचाना कि यह अपने को कर्त्ता जो माना— यही तो प्रमाद करते रहे! शिखर तो सभी अभी हैं, घाटियों में हरियालियाँ छाई हैं; तलहटियाँ तो और भी नई बस्तियों में उभर आई हैं। सभी कुछ तो बना है, रहेगा: एक प्यार ही को क्या नश्वर हम कहेंगे— इस लिए कि हम नहीं रहेंगे?

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