आँगन के पार द्वार.
आँगन के पार द्वार खुले द्वार के पार आँगन ! भवन के ओर-छोर सभी मिले— उन्हीं में कहीं खो गया भवन । कौन द्वारी कौन आगारी, न जाने, पर द्वार के प्रतिहारी को भीतर के देवता ने किया बार-बार पा-लागन ।

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