अध्यात्म फल (जब कड़ी मारें पड़ीं)
जब कड़ी मारें पड़ीं, दिल हिल गया पर न कर चूँ भी, कभी पाया यहाँ; मुक्ति की तब युक्ति से मिल खिल गया भाव, जिसका चाव है छाया यहाँ। खेत में पड़ भाव की जड़ गड़ गयी, धीर ने दुख-नीर से सींचा सदा, सफलता की थी लता आशामयी, झूलते थे फूल-भावी सम्पदा। दीन का तो हीन ही यह वक्त है, रंग करता भंग जो सुख-संग का भेद कर छेद पाता रक्त है राज के सुख-साज-सौरभ-अंग का। काल की ही चाल से मुरझा गये फूल, हूले शूल जो दुख मूल में एक ही फल, किन्तु हम बल पा गये; प्राण है वह, त्राण सिन्धु अकूल में। मिष्ट है, पर इष्ट उनका है नहीं शिष्ट पर न अभीष्ट जिनका नेक है, स्वाद का अपवाद कर भरते मही, पर सरस वह नीति - रस का एक है।

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