जो कहा नहीं गया
है, अभी कुछ और जो कहा नहीं गया। उठी एक किरण, धायी, क्षितिज को नाप गयी, सुख की स्मिति कसक-भरी, निर्धन की नैन-कोरों में काँप गयी, बच्चे ने किलक भरी, माँ की वह नस-नस में व्याप गयी। अधूरी हो, पर सहज थी अनुभूति : मेरी लाज मुझे साज बन ढाँप गयी- फिर मुझ बेसबरे से रहा नहीं गया। पर कुछ और रहा जो कहा नहीं गया। निर्विकार मरु तक को सींचा है तो क्या? नदी-नाले, ताल-कुएँ से पानी उलीचा है तो क्या? उड़ा हूँ, दौड़ा हूँ, तैरा हूँ, पारंगत हूँ, इसी अंहकार के मारे अन्धकार में सागर के किनारे ठिठक गया : नत हूँ उस विशाल में मुझ से बहा नहीं गया। इस लिए जो और रहा, वह कहा नहीं गया। शब्द, यह सही है, सब व्यर्थ है पर इसी लिए कि शब्दातीत कुछ अर्थ हैं। शायद केवल इतना ही : जो दर्द है वह बड़ा है, मुझ से ही सहा नहीं गया। तभी तो, जो अभी और रहा, वह कहा नहीं गया।

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