उषा दर्शन
मैं ने कहा, डूब चाँद! रात को सिहरने दे, कुइँयों को मरने दे, आक्षितिज तम फैल जाने दे। -पर तम थमा और मुझ ही में जम गया। मैं ने कहा-उठ रही लजीजी भोर-रश्मि, सोयी दुनिया में तुझे कोई देखे मत, मेरे भीतर समा जा तू, चुपके से मेरी यह हिमाहत नलिनी खिला जा तू। -वो प्रगल्भा मानमयी बावली-सी उठ सारी दुनिया में फैल गयी।

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