वीर-बहू
एक दिन देवदारु-वन बीच छनी हुई किरणों के जाल में से साथ तेरे घूमा था। फेनिल प्रपात पर छाये इन्द्र-धनु की फुहार तले मोर-सा प्रमत्त-मन झूमा था बालुका में अँकी-सी रहस्यमयी वीर-बहू पूछती है रव-हीन मखमली स्वर से : याद है क्या, ओट में बुरूँस की प्रथम बार धन मेरे, मैं ने जब ओठ तेरा चूमा था?

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