जैसे तुझे स्वीकार हो
जैसे तुझे स्वीकार हो! डोलती डाली, प्रकम्पित पात, पाटल-स्तम्भ विलुलित, खिल गया है सुमन मृदु-दल, बिखरते किंजल्क प्रमुदित, स्नात मधु से अंग, रंजित-राग केशर-अंजली से स्तब्ध-सौरभ है निवेदित: मलय मारुत, और अब जैसे तुझे स्वीकार हो! पंख कम्पन-शिथिल, ग्रीवा उठी, डगमग पैर, तन्मय दीठ अपलक, कौन ऋतु है, राशि क्या है, कौन-सा नक्षत्र, गत-शंका, द्विधा-हत, बिन्दु अथवा वज्र हो- चंचु खोले, आत्म-विस्मृत हो गया है यती चातक : स्वाति, नीरद, नील-द्युति, जैसे तुझे स्वीकार हो। अभ्र लख भ्रू-चाप सा, नीचे प्रतीक्षा में स्तिमित नि:शब्द धरा पाँवर-सी बिछी है, वक्ष उद्वेलित हुआ है स्तब्ध, चरण की हो चाप किंवा छाप तेरे तरल चुम्बन की : महाबल, हे इन्द्र, अब जैसे तुझे स्वीकार हो। मैं खड़ा खोले हृदय के सभी ममता-द्वार, नमित मेरा भाल; आत्मा नमित-तर है, नमित-तम मम भावना-संसार, फूट निकला है न-जाने कौन हृत्तल वेधता-सा निवेदन का अतुल पारावार, अभय वर हो, वरद कर हो, तिरस्कारी वर्जना, हो प्यार : तुझे प्राणाधार, जैसे हो तुझे स्वीकार- सखे, चिन्मय देवता, जैसे तुझे स्वीकार हो!

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