उषा के समय
प्रियतम, पूर्ण हो गया गान! हम अब इस मृदु अरुणाली में होवें अन्तर्धान! लहर-लहर का कलकल अविरल, काँप-काँप अब हुआ अचंचल व्यापक मौन मधुर कितना है, गद्गद अपने प्राण! ये सब चिर-वांछित सुख अपने, बाद उषा के होंगे सपने- फिर भी इस क्षण के गौरव में हम-तुम हों अम्लान। नभ में राग-भरी रेखाएँ, एक-एक कर मिटती जाएँ- किसी शक्ति के स्वागत को है यह बहुरंग वितान। मरण? पिघल कर सजल शक्ति से, मिल जाना उस महच्छक्ति से! करें मृत्यु का क्यों न उल्लसित हो कर हम आह्वान! राग समाप्त! चलो अब जागो, निद्रा में नव-चेतन माँगो! नयी उषा का मृत्यु हमारी से होगा उत्थान! प्रियतम, पूर्ण हो गया गान!

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