जीवन-दान
मुक्त बन्दी के प्राण! पैरें की गति शृंखल बाधित, काया कारा-कलुषाच्छादित पर किस विकल प्रेरणा-स्पन्दित उद्धत उस का गान! अंग-अंग उस का क्षत-विह्वल हृदय हताशाओं से घायल, किन्तु असह्य रणातुर उस की आत्मा का आह्वान! उस की भूख-प्यास भी नियमित उस की अन्तिम सम्पत्ति परिहृत लज्जित पर बलिदान देख कर उस का जीवन-दान! मुक्त बन्दी के प्राण!

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