कौन-सा सच है
दिन के उजाले में अनेकों नाम सब के समाज में हँसी-हँसी सहज पुकारना रात के सहमे अँधेरे में अपने ही सामने अकेला एक नाम बड़े कष्ट से, अनिच्छा से सकारना। कौन-सा सच है? सब की जीत की खोज कर लायी हुई खुशी में अपनी हार को नकारना या कि यह : कि एक ही विकल्प है हार को लब्धि मान अपने मिटने पर ही अपने को वारना?

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