एक दिन
ठीक है, कभी तो कहीं तो चला जाऊँगा पर अभी कहीं जाना नहीं चाहता। अभी नभ के समुद्र में शरद के मेघों की मछलियाँ किलोलती हैं मधुमाली के झूमरों में कलियाँ पलकें अधखोलती हैं अभी मेहँदी की गन्ध-लहरें पथरीले मन-कगारों की दरारें टटोलती हैं अभी, एकाएक, मैं तुम्हें छूना, पाना, तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाना नहीं चाहता पर अभी तुम्हारी स्निग्ध छाँह से अपने को हटाना नहीं चाहता! ठीक है, कभी तो कहीं तो चला जाऊँगा पर अभी कहीं जाना नहीं चाहता। शब्द सूझते हैं जो गहराइयाँ टोहते हैं पर छन्दों में बँधते नहीं, बिम्ब उभरते हैं जो मुझे ही मोहते हैं, मुझ से सधते नहीं, एक दिन-होगा!-तुम्हारे लिए लिख दूँगा प्यार का अनूठा गीत, पर अभी मैं मौन में निहाल हूँ- गाना-गुनगुनाना नहीं चाहता! क्या करूँ : इतना कुछ है जो छिपाना नहीं चाहता पर अभी बताना नहीं चाहता। ठीक है, कभी तो कहीं तो चला जाऊँगा पर अभी कहीं जाना नहीं चाहता, नहीं चाहता!

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