जिस मन्दिर में मैं गया नहीं
जिस मन्दिर में मैं गया नहीं उस की देहरी से भीतर चिकनी गच पर देख और पैरों की छाप चला जाता है मन उस ओर जिधर जाना होता है। ओ तुम सब! जिन की है पहुँच दूर तक (जिस की जितनी) मुझे किसी से हिर्स नहीं। पैरों की छाप तुम्हारे हर पग की मुझ पर पड़ती है : मैं पहुँचूँ या नहीं, तुम्हारे पैरों से ही नपता-नपता कभी जान लूँगा मैं अपनी नाप और उस ओर नहीं, उस तक जा लूँगा : जहाँ भी हूँ, उस का प्रसाद पा लूँगा।

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