कहाँ से उठे प्यार की बात
कहाँ से उठे प्यार की बात जब कदम-कदम पर कोई असमंजस में डाल दे? जैसे शहर की त्रस्त क्षिति-रेखा पर रात धुँधलके के सागर से एक तारा उछाल दे? आता है यही : उसी तारे-सा कंटकित तर्कातीत, निःसंशय अकारण, निराधार पर निर्भय एक शब्द-रहित चकित आशीर्वाद।

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