बत्ती और शिखा
मेरे हृदय-रक्त की लाली इस के तन में छायी है, किन्तु मुझे तज दीप-शिखा के पर से प्रीति लगायी है। इस पर मरते देख पतंगे नहीं चैन मैं पाती हूँ- अपना भी परकीय हुआ यह देख जली मैं जाती हूँ।

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