तुम फिर आ गए, क्वाँर?
भाले की अनी-सी बनी बगुलों की डार, फुटकियाँ छिट-फुट गोल बाँध डोलती सिहरन उठती है एक देह में कोई तो पधारा नहीं, मेरे सूने गेह में- तुम फिर आ गये, क्वाँर?

Read Next