मुझे सब कुछ याद है
मुझे सब कुछ याद है मुझे सब कुछ याद है। मैं उन सबों को भी नहीं भूला। तुम्हारी देह पर जो खोलती हैं अनमनी मेरी उँगलियाँ-और जिन का खेलना सच है, मुझे जो भुला देता है- सभी मेरी इन्द्रियों की चेतना उन में जगी है। इन्द्रियाँ सब जागती हैं। और सब भूली हुई हैं खेल में जिस में तुम्हारा मैं सखा हूँ- मानवों की सृष्टियों के जाल से उन्मुक्त- पगहा तोड़ भागे हुए मृग-सा- स्वयं मानव, चिरन्तन की सृष्टि का लघु अंग। किन्तु सोयी इन्द्रियों को जगा कर जो स्वयं सोता है- वह सभी को याद करता है। जो भुलाता है, नहीं वह भूल पाता। जो रमाता है, स्वयं निर्लेप है वह। वही कहता है कि वे सब प्यार भी जी रहे हैं-तड़पते हैं-हैं। वे सब हैं। और मेरे प्यार, तुम भी हो। चाँदनी भी है। मधु के गन्ध बहुविध-पल्लवों के, कोरकों के- गन्धवह में बसे, वे भी हैं। चाँदनी भी है। नहीं है तो मैं नहीं हूँ। इसलिए तुम प्यार लो मेरा-कि वह तो है। प्यार-निधि। नहीं है तो मैं नहीं हूँ। किन्तु जो मिट गये उन का प्यार ही तो प्यार है। प्यार लो मेरा-उसी में चाँदनी है। उस में तुम उसी में बीते हुए सब प्यार भी हैं। नहीं है तो मैं नहीं हूँ-जो कि उन सब को कभी भूला नहीं हूँ। मुझे सब कुछ याद है।

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