पावस-प्रात
भोर बेला। सिंची छत से ओस की तिप्-तिप्! पहाड़ी काक की विजन को पकड़ती-सी क्लान्त बेसुर डाक- 'हाक्! हाक्! हाक्!' मत सँजो यह स्निग्ध सपनों का अलस सोना- रहेगी बस एक मुट्ठी खाक! 'थाक्! थाक्! थाक्!'

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