पुरुष और नारी
सूरज ने खींच लकीर लाल नभ का उर चीर दिया। पुरुष उठा, पीछे न देख मुड़ चला गया! यों नारी का जो रजनी है; धरती है, वधुका है, माता है, प्यार हर बार छला गया।

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