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एक रोगिणी बालिका के प्रति
एक रोगिणी बालिका के प्रति
अज्ञेय
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सीखा है तारे ने उमँगना जैसे धूप ने विकसना हरी घास ने पैरों में लोट-लोट बिछलना-विलसना, और तुम ने-पगली बिटिया-हँसना, हँसना, हँसना, सीखा है मेरे भी मन ने उमसना, मेरी आँखों ने बरसना, और मेरी भावना ने आशीर्वाद के सुवास-सा तुम्हारे आस-पास बसना!
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Last edited by
abhishek
September 13, 2017
Added by
Chhotaladka
March 31, 2017
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