कहती है पत्रिका
कहती है पत्रिका चलेगा कैसे उन का देश? मेहतर तो सब रहे हमारे हुए हमारे फिर शरणागत- देखें अब कैसे उन का मैला ढुलता है! 'मेहतर तो सब रहे हमारे हुए हमारे फिर शरणगत।' अगर वहीं के वे हो जाते पंगु देश के सही, मगर होते आज़ाद नागरिक। होते द्रोही! यह क्या कम है यहाँ लौट कर जनम-जनम तक जुगों-जुगों तक मिले उन्हें अधिकार, एक स्वाधीन राष्ट्र का मैला ढोवें?

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