इतिहास का न्याय
जो जिये वे ध्वजा फहराते घर लौटे जो मरे वे खेत रहे। जो झूमते नगर लौटे, डूबे जय-रस में। (खँडहरों के प्रेत और कौन हैं- जिन के मुड़े हों पैर पीछे को?) जो खेत रहे थे, वे अंकुरित हुए इतिहासों की उर्वर मिट्टी में, कुसुमित पल्लवित हुए स्वप्न-कल्पी लोक-मानस में।

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