हमारा रक्त
यह इधर बहा मेरे भाई का रक्त वह उधर रहा उतना ही लाल तुम्हारी एक बहिन का रक्त! बह गया, मिलीं दोनों धारा जा कर मिट्टी में हुईं एक पर धरा न चेती मिट्टी जागी नहीं न अंकुर उस में फूटा। यह दूषित दान नहीं लेती- क्योंकि घृणा के तीखे विष से आज हो गया है अशक्त निस्तेज और निर्वीर्य हमारा रक्त!

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