ठाँव नहीं
शहरों में कहर पड़ा है और ठाँव नहीं गाँव में अन्तर में ख़तरे के शंख बजे, दुराशा के पंख लगे पाँव में त्राहि! त्राहि! शरण-शरण! रुकते नहीं युगल चरण थमती नहीं भीतर कहीं गँूज रही एकसुर रटना कैसे बचें कैसे बचें कैसे बचें कैसे बचें! आन? मान? वह तो उफान है गुरूर का- पहली जरूरत है जान से चिपटना!

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