शहतूत
वापी में तूने कुचले हुए शहतूत क्यों फेंके, लड़की? क्या तूने चुराये- पराये शहतूत यहाँ खाये हैं? क्यों नहीं बताती? अच्छा, अगर नहीं भी खाये तो आँख क्यों नहीं मिलाती? और तूने यह गाल पर क्या लगाया? ओह, तो क्या शहतूत इसी लिए चुराये- सच नहीं खाये? शहतूत तो ज़रूर चुराये, अब आँख न चुरा! नहीं तो देख, शहतूत के रस की रंगत से मेरे ओठ सँवला जाएँगे तो लोग चोरी मुझे लगाएँगे और कहेंगे कि तुझे भी चोरी के गुर मैं ने सिखाये हैं! तब, लड़की, हम किसे बताएँगे! कैसे समझाएँगे? अच्छा, आ, वापी की जगत पर बैठ कर यही सोचें। लड़की, तू क्यों नहीं आती?

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