समाधि-लेख
मैं बहुत ऊपर उठा था, पर गिरा। नीचे अन्धकार है-बहुत गहरा पर बन्धु! बढ़ चुके तो बढ़ जाओ, रुको मत : मेरे पास-या लोक में ही-कोई अधिक नहीं ठहरा!

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