कस्तालिया का झरना
चिनारों की ओट से सुरसुराता सरकता झरने का पानी। अरे जा! चुप नहीं रहा जाता तो चाहे जिस से कह दे, जा, सारी कहानी। पतझर ने कब की ढँक दी है धरा की गोद-सी वह ढाल जहाँ हम ने की थी मनमानी

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