कहाँ
मन्दिर में मैं ने एक बिलौटा देखा : चपल थीं उस की आँखें और विस्मय-भरी उस की चितवन; और उस का रोमिल स्पर्श न्यौतता था सिहरते अनजान खेलों के लिए जिस का आश्वासन था उस के लोचीले बिजली-भरे तन में! बाहर यह एक अजनबी नारी है : आँखों में स्तम्भित, निषेधता अँधेरा, बदन पर एक दूरी का ठंडा ओष! भद्रे, तुम ने मेरा बिलौटा कहाँ छिपा दिया?

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