अच्छा खंडित सत्य
अच्छा खंडित सत्य सुघर नीरन्ध्र मृषा से, अच्छा पीड़ित प्यार सहिष्णु अकम्पित निर्ममता से। अच्छी कुण्ठा रहित इकाई साँचे-ढले समाज से, अच्छा अपना ठाठ फ़क़ीरी मँगनी के सुख-साज से। अच्छा सार्थक मौन व्यर्थ के श्रवण-मधुर भी छन्द से। अच्छा निर्धन दानी का उघडा उर्वर दुख धनी सूम के बंझर धुआँ-घुटे आनन्द से। अच्छे अनुभव की भट्टी में तपे हुए कण-दो कण अन्तर्दृष्टि के, झूठे नुस्खे वाद, रूढि़, उपलब्धि परायी के प्रकाश से रूप-शिव, रूप सत्य की सृष्टि के।

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