बालू घड़ी
तुम मेरी एक निजी घड़ी जिस में मैं ओक भर-भर समय पूरता हूँ और वह बालू हो कर रीत जाता है। जिस बालू को मैं फिर बटोरता हूँ। किस के पैरों की छाप है इस बालू पर जिसे ताकते-ताकते मेरा सारा चेतन जीवन बीत जाता है? और मैं फिर अपने को पाने के लिए तुम्हें अगोरता हूँ।

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