अंगार
एक दिन रूक जाएगी जो लय उसे अब और क्या सुनना? व्यतिक्रम ही नियम हो तो उसी की आग में से बार-बार, बार-बार मुझे अपने फूल हैं चुनना। चिता मेरी है: दुख मेरा नहीं। तुम्हारा भी बने क्यों, जिसे मैंने किया है प्यार? तुम कभी रोना नहीं, मत कभी सिर धुनना। टूटता है जो उसी भी, हाँ, कहो संसार पर जो टूट को भी टेक दे, ले धार, सहार, उस अनन्त, उदार को कैसे सकोगे भूल— उसे, जिस को वह चिता की आग है, होगी, हुताशन— जिसे कुछ भी, कभी, कुछ से नहीं सकता मार— वही लो, वही रखो साज-सँवार— वह कभी बुझने न वाला प्यार का अंगार!

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